
जब सरहद पर जवान गोलियों की बौछार सहते हैं, तो देश के भीतर भी एक जंग चल रही होती है—जिम्मेदारी निभाने की, सच्चाई बचाने की और उस तिरंगे की शान को हर दिन जीने की। देशभक्ति कोई त्यौहार नहीं, जो साल में दो बार मनाया जाए। यह वो एहसास है, जो हर सुबह आँख खुलते ही अपने कर्तव्यों के साथ साँस लेता है।
कई बार हम सोचते हैं कि देश के लिए मर-मिटने वाले ही असली देशभक्त होते हैं। लेकिन अगर कोई शिक्षक अपने बच्चों में ईमानदारी बोता है, कोई डॉक्टर बिना स्वार्थ के सेवा करता है, कोई युवा ट्रैफिक सिग्नल पर रुकर नियमों का पालन करता है—तो क्या ये भी किसी युद्ध का हिस्सा नहीं हैं? देशभक्ति की लड़ाई हर उस व्यक्ति के भीतर भी चलती है, जो रोज़ अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश को चुनता है।
सोशल मीडिया के इस दौर में देशभक्ति की परीक्षा अब तलवार से नहीं, उंगलियों से होती है। जब आप किसी अफवाह को बिना जांचे शेयर नहीं करते, जब आप नफरत नहीं फैलाते, जब आप सच्चाई के साथ खड़े होते हैं—तो यकीन मानिए, आप भी सीमा पर लड़ रहे हैं। फर्क बस इतना है कि आपका मोर्चा डिजिटल है, और हथियार विवेक।
देश के हर कोने में वो मां है, जो अपने बेटे को वर्दी पहनाकर विदा करती है, यह जानते हुए कि शायद अगली बार उसकी गोद सूनी रह जाए। वो किसान है, जो अपने पसीने से देश का पेट भरता है। वो सफाईकर्मी है, जो बिना किसी तमगे के इस मिट्टी की सेवा करता है। ये सब अपने-अपने मोर्चों पर डटे हुए सिपाही हैं।
सच्ची देशभक्ति वो है जो हर दिन खुद को बेहतर बनाने की कोशिश में दिखे। अपने फर्ज निभाने में दिखे। जब हर भारतीय नागरिक खुद को जवाबदेह माने, तब जाकर हम एक सशक्त राष्ट्र बनाते हैं। क्योंकि देश को तोड़ने के लिए बम नहीं, बस कुछ गैरजिम्मेदार लोग काफी होते हैं—और बचाने के लिए चाहिए हिम्मत, एकता और वो सच्चा प्रेम जो हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसता है।
देशभक्ति सिर्फ सरहद की कहानी नहीं है। यह हर उस दिल की दास्तान है, जो बिना किसी लालच के कहता है—”मेरा भारत महान।”