By Samaiyra Singh Hada
कल्पना कीजिए कि जिस घर की दीवारों ने आपको बचपन में सुकून दिया हो, वही अब चीखों और सिसकियों की गूंज से भर गया हो। भारत में हज़ारों महिलाएं हर साल घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, लेकिन दुख की बात यह है कि उनमें से अधिकतर कभी अपनी बात सामने ला ही नहीं पातीं।
घरेलू हिंसा केवल मारपीट नहीं है – यह मानसिक उत्पीड़न, आर्थिक शोषण, यौन हिंसा, अपमान और धमकी जैसे रूपों में भी होती है। लेकिन सवाल उठता है: क्या महिलाएं इससे बाहर निकल सकती हैं? क्या कानून उनके साथ है?
हाँ, और इसी पर आधारित है हमारी यह रिपोर्ट।
घरेलू हिंसा क्या है?
घरेलू हिंसा को आम बोलचाल की भाषा में अक्सर “पति द्वारा पत्नी पर अत्याचार” के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह परिभाषा अधूरी है। 2005 का घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) कहता है कि घरेलू हिंसा में शारीरिक, मानसिक, यौन, आर्थिक और भावनात्मक उत्पीड़न शामिल हैं।
यह अधिनियम जीवनसाथी के साथ-साथ ससुराल के अन्य सदस्यों द्वारा की गई हिंसा को भी कवर करता है।
आंकड़े क्या कहते हैं?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, हर 3 में से 1 महिला अपने जीवन में कभी न कभी घरेलू हिंसा का शिकार रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में ये आंकड़ा और भी डरावना है, जहां महिलाओं को अक्सर “परिवार की इज़्ज़त” के नाम पर चुप करा दिया जाता है।
आपके कानूनी अधिकार क्या हैं?
1. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005
इस कानून के तहत पीड़िता:
•सुरक्षा का आदेश ले सकती है
•घर में रहने का अधिकार पा सकती है (यहां तक कि वह घर पति के नाम पर हो)
•भरण-पोषण की मांग कर सकती है
•मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न के लिए मुआवज़ा मांग सकती है
2. भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धाराएं
1 जुलाई 2024 से भारतीय दंड संहिता (IPC) को हटाकर नया कानून, भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS, 2023) लागू हो गया है। इसके अनुसार घरेलू हिंसा से जुड़े अपराध इन धाराओं के अंतर्गत आते हैं:
•धारा 85 – पत्नी के साथ शारीरिक या मानसिक क्रूरता करने पर सज़ा का प्रावधान
•धारा 115 – जानबूझकर चोट पहुंचाना या शारीरिक हमला करना
•धारा 351 – धमकी देना या डराना
•धारा 64–70 – यौन अपराधों से संबंधित विस्तृत प्रावधान
नोट: भारत में अब भी वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपराध की तरह पूरी तरह से मान्यता नहीं दी गई है। इस पर बहस जारी है।
3. फ्री लीगल एड
अगर कोई महिला आर्थिक रूप से कमजोर है, तो वह निःशुल्क कानूनी सहायता (Free Legal Aid) के लिए आवेदन कर सकती है। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) और राज्य स्तर की समितियां इसमें सहायता करती हैं।
क्या करें अगर आप घरेलू हिंसा की शिकार हैं?
- सबसे पहले चुप्पी तोड़ें
किसी भरोसेमंद व्यक्ति को बताएं – मां, बहन, मित्र या पड़ोसी। आपकी आवाज़ पहला कदम है।
- सबूत जुटाएं
मैसेज, ऑडियो रिकॉर्डिंग, मेडिकल रिपोर्ट, या किसी प्रत्यक्षदर्शी की गवाही – ये सभी आपकी बात को मजबूती देंगे।
- महिला हेल्पलाइन से संपर्क करें
•1091: महिला हेल्पलाइन नंबर
•181: महिला सहायता नंबर (कई राज्यों में काम करता है)
•112: राष्ट्रीय इमरजेंसी नंबर
- पुलिस स्टेशन या महिला थाना में शिकायत दर्ज करें
आप सीधे FIR दर्ज करा सकती हैं। अगर पुलिस FIR दर्ज करने से मना करे, तो SP को लिखित शिकायत दें या महिला आयोग से संपर्क करें।
- प्रोटेक्शन ऑफिसर से संपर्क करें
हर जिले में एक Protection Officer नियुक्त होता है जो आपको कोर्ट से सुरक्षा आदेश दिलवाने में मदद करता है। वो आश्रय, काउंसलिंग और सहायता केंद्रों से जोड़ सकता है।
अगर आप मदद करना चाहते हैं…
अगर आप पीड़िता नहीं हैं लेकिन किसी को ऐसी परिस्थिति में देख रहे हैं, तो आंखें मूंदना बंद करें।
•उन्हें महिला हेल्पलाइन नंबर बताएं
•जरूरत हो तो पुलिस को सूचित करें
•अगर आप वकील हैं, तो फ्री लीगल सहायता की पेशकश करें
•सामाजिक संस्थाओं से जोड़ने में मदद करें
डरना नहीं.. जागरूक बनना है..!!
घरेलू हिंसा कोई “पर्सनल मैटर” नहीं है। यह एक सामाजिक अपराध है। भारत का कानून पीड़िता के साथ खड़ा है — बशर्ते वह अपनी आवाज़ उठाए।
आपका अधिकार सिर्फ कागज़ों में नहीं, आपकी हिम्मत में है।
आप भी ऐसी किसी घटना से गुज़रे हैं या किसी को जानते हैं? हमें लिखें – आपकी पहचान गुप्त रखी जाएगी।
Nice its important for girls to know this
good