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फिल्म जो बार-बार देखने का मन करता है – मेरी फेवरिट मूवी की वजह

कुछ फिल्में होती हैं जो एक बार देखने के बाद दिमाग़ से निकल जाती हैं, लेकिन कुछ ऐसी होती हैं जो दिल में बस जाती हैं। चाहे कितनी भी बार देखो, हर बार वैसा ही रोमांच, वही इमोशन, और वही जुड़ाव महसूस होता है। ऐसी फिल्में सिर्फ कहानियाँ नहीं होतीं, बल्कि हमारे जीवन के हिस्से बन जाती हैं। मेरी फेवरिट फिल्म भी कुछ ऐसी ही है—जो हर बार वैसी ही ताज़गी और एहसास के साथ लौटती है, जैसे पहली बार देखी हो।

हर किसी की ज़िंदगी में एक ऐसी फिल्म जरूर होती है, जो बार-बार देखने का मन करता है।
तो आइए जानते हैं कुछ फिल्मी दीवानों से कि उनकी फेवरिट मूवी कौन-सी है और क्यों।

सिद्धार्थ गुप्ता

MS DHONI : The untold story” ये मेरी अब तक की सबसे पसंदीदा फिल्म है। क्योंकि इसकी कहानी इस बात का पुख्ता सबूत है कि सिनेमा को समाज का आईना कहा जाता है। ये केवल भारतीय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की ही कहानी नही दिखाती बल्कि भारत जैसे क्रिकेट प्रेमी देश में हजारों प्रतिभाशाली क्रिकेटर के संघर्ष को हूबहू दर्शाती है। यह सिनेमा दर्शाती है कि एक मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे को अगर खिलाड़ी बनने का शौक है तो उसे किस तरह के विभिन्न सवालों के चक्रव्यूह से बचते हुए अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्र रहना चाहिए। फिल्म में धोनी के जीवन में घटित विभिन्न संघर्षों को दिखाने के साथ साथ इस बात पर भी ध्यान केंद्रित किया गया कि कैसे उन्होंने अपने आत्मविश्वास से अपने लक्ष्य की प्राप्ति की। यह फिल्म सिखाती है कि अगर किसी चीज को पूरा करने का संकल्प दृढ़ता से लिया जाए तो हर बड़ी मुश्किल आसान हो जाती हैं।

अभिलाषा झा

मेरी पसंदीदा फिल्म है आइकॉनिक ‘फिर हेरा फेरी‘। मेरे लिए सबसे बेहतरीन हिस्सा वह है जब राजू, श्याम और बाबूराव एक छोटी सी गलती की वजह से बड़ी मुसीबत में फंस जाते हैं, फिर भी कॉमेडी लगातार चलती रहती है। सबसे मज़ेदार सीन वह है जब ग्रेनेड्स को लेकर पूरी तरह से कन्फ्यूजन हो जाती है — टाइमिंग और एक्सप्रेशन्स बिल्कुल परफेक्ट होते हैं। मुझे ये सीन इसलिए पसंद है क्योंकि इसमें कॉमेडी और टेंशन का जबरदस्त मेल होता है, और बाबूराव की अनोखी स्टाइल तो हर चीज़ को और भी मज़ेदार बना देती है। चाहे जितनी बार भी देखूं, ये सीन हमेशा मुझे हंसा देता है।

अभिषेक सोनी

मुझे फिल्म ” हिचकी ” इसलिए बेहद प्रेरणादायक लगती है क्योंकि यह आत्मसंदेह से ऊपर उठकर अपने डर और कमजोरियों को पीछे छोड़ने का संदेश देती है। रानी मुखर्जी का किरदार यह साबित करता है कि कोई भी शारीरिक चुनौती आपके लक्ष्य के आड़े नहीं आ सकती, जब तक आपका आत्मविश्वास मजबूत हो। मुझे खासतौर पर वह सीन बेहद पसंद है जब उनके छात्र परीक्षा में सफल होते हैं। उसे बार-बार देखना मुझे जीवन में कोशिश करने की प्रेरणा देता है। यह फिल्म यह भी सिखाती है कि समाज आपकी कमियों पर उंगली उठाएगा, पर उन्हें महत्व दिए बिना आगे बढ़ना ही एक सफ़क़ जीवन का मूल मंत्र है।

किशन सिंह

द शॉशैंक रिडेम्प्शन ” मेरी पसंदीदा फिल्म है, क्योंकि यह आशा, दृढ़ता और आंतरिक शक्ति को बेहद खूबसूरती से दर्शाती है।
एंडी डुफ्रेन का शांत लेकिन अडिग संकल्प और रेड की भावनात्मक यात्रा यह दिखाती है कि सबसे अंधेरे स्थानों में भी इंसानी आत्मा कैसे चमक सकती है। यह कहानी सिर्फ जेल से भागने की नहीं है — यह कभी हार न मानने की प्रेरणा देती है।
फिल्म की वो मशहूर पंक्ति — “Hope is a good thing” — हमेशा मुझे प्रेरित करती है।
इसकी गहराई, भावनात्मक जुड़ाव और कालातीत कहानी कहने की शैली इसे बार-बार देखने लायक बनाती है।

सिद्धि सिंघई

एक ऐसी फिल्म जो मुझे बार-बार देखने का मन करता है – हम साथ साथ हैं
मेरी पसंदीदा फिल्म ‘”हम साथ साथ हैं“’ है, क्योंकि यह पूरी तरह से भारतीय भावनाओं से जुड़ी हुई, दिलचस्प, सांस्कृतिक और आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ पारिवारिक मूल्यों को दर्शाने वाली फिल्म है।इस फिल्म का हर हिस्सा मुझे बहुत अच्छा लगा, लेकिन जो हिस्सा मेरे दिल को सबसे ज़्यादा छू गया, वह तब था जब संजना कहती है – “भैया ने जाते वक़्त मुझसे कहा था कि तेरे सारे दुख मेरे, मेरे सारे सुख तेरे।”यह संवाद उस किरदार के मुंह से आता है जो अनाथ होता है और जिसे इस परिवार ने अपनाया होता है। सोचिए, प्रेम कितना निर्मल हो सकता है कि जहाँ खून का रिश्ता भी नहीं होता, वहाँ भी इतने गहरे समर्पण की भावना दिखाई देती है।यह हिस्सा मुझे फिल्म का सबसे संवेदनशील और भावनात्मक क्षण लगता है, जो बार-बार देखने पर भी उतना ही असर करता है।

अभिराज मिश्रा

एक फिल्मी दीवाने के लिए अपने पसंदीदा फिल्म के बारे में लिखना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि ऐसी कई फिल्में होती हैं जो दिल के बेहद करीब होती हैं। लेकिन अगर मुझसे पूछा जाए कि मेरी सबसे पसंदीदा और सबसे खास फिल्म कौन-सी है, तो मेरा जवाब होगा — फराह ख़ान की “ओम शांति ओम“।जब कोई पूछता है कि ये फिल्म तुम्हें इतनी क्यों पसंद है, तो आमतौर पर जवाब भावनाओं से जुड़ा होता है। किसी न किसी तरह की nostalgia यानी यादों की एक खास भावना उस फिल्म से जुड़ी होती है। “ओम शांति ओम” मेरे लिए वही भावना है — शुद्ध नॉस्टैल्जिया।मैं 2006 में पैदा हुआ था और जब ये फिल्म रिलीज़ हुई थी तब मैं करीब एक साल का था। तब से आज तक एक डायलॉग हमेशा याद रहा — “इसी झूमर के नीचे मिलेगी शांति की लाश”। इस फिल्म के गाने, उसके चुटकुले, हर छोटा-बड़ा डिटेल — सब कुछ फराह खान के सिग्नेचर स्टाइल में है — एकदम देसी, फुल ऑन बॉलीवुड मसाला।जब “दीवानी दीवानी” गाने में पूरा बॉलीवुड एक साथ थिरकता है, तो एक डांस-लविंग इंसान के तौर पर मैं भी पार्टीज़ में थिरकने लगता था। यहीं से मेरी शाहरुख़ ख़ान और दीपिका पादुकोण की फैनबॉय जर्नी शुरू हुई।आज भी जब कभी उदास होता हूं या लगता है कि कुछ ठीक नहीं चल रहा, मैं नेटफ्लिक्स खोलकर “ओम शांति ओम” लगा देता हूं। कुछ फिल्में घर जैसी होती हैं — जो आपको आपकी बचपन की सुनहरी यादों में वापस ले जाती हैं। और “ओम शांति ओम” मेरे लिए वही फिल्म है — मेरे दिल के सबसे करीब।

आकर्षित सिंह चंदेल

गैंग्स ऑफ वासेपुर 1 और 2 मेरी सबसे पसंदीदा फिल्में हैं। इन्हें मै कई बार देख सकता हूं क्योंकि ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि हमारे समाज और आस पास के लोगों की कहानी हमे दिखाती हैं। इस फिल्म में जो किरदार और घटनाएं हैं, वो हमारे आस पास के माहौल से जुड़ी हैं। एक लंबे समय से फिल्मों में ज्यादा मिर्च मसाला एक्शन और रोमांस होता है, जिससे हम अपनी रोजमार्रा की कहानियों से दूर हो जाते हैं। गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्में हमें सिखाती हैं कि समाज की सच्चाई को भी पर्दे पर लाया जा सकता है, और उस समाज के अलग अलग लोगों की खुलकर बात होनी चाहिए जो हमें किरदार बनाने में सहायता करते हैं।

एकता सिंह

मेरी पसंदीदा फिल्म जो दिल को छू जाती है और हर बार देखने के बाद एक नई ताक़त देती है — वो है “चक दे! इंडिया” (2007)।
“चक दे! इंडिया” एक बेइज़्ज़त हो चुके हॉकी खिलाड़ी (कबीर ख़ान, जिसे शाहरुख़ ख़ान ने निभाया है) की कहानी है, जो भारत की महिला हॉकी टीम को न सिर्फ़ टूर्नामेंट जितवाता है, बल्कि देश का भरोसा भी वापस दिलाता है।
फिल्म यह दिखाती है कि अनुशासन, एकता और आत्म-विश्वास से किसी भी मुश्किल को हराया जा सकता है।
सबसे दमदार हिस्सा वो है जब कबीर ख़ान लड़कियों से कहते हैं ,”मुझे स्टेट्स के नाम ना सुनाई देते हैं, ना दिखाई देते हैं… सिर्फ़ एक मुल्क का नाम सुनाई देता है – इंडिया।”
उस सीन में जो जज़्बा होता है, वो सिर्फ़ मोटिवेशन नहीं देता — वो अंदर एक चिंगारी जगा देता है।

क्यों कुछ फिल्में दिल से उतरती ही नहीं?

फिल्में हमारी ज़िंदगी की भाग-दौड़ में एक ठहराव की तरह होती हैं—जहाँ हम कुछ देर के लिए हँसते हैं, रोते हैं, और खुद को किसी और कहानी में जीते हुए पाते हैं। यही वजह है कि कुछ फिल्में दिल में घर कर जाती हैं और बार-बार देखने का मन करती हैं। चाहे वो बचपन की यादों से जुड़ी हों या किसी खास मोड़ पर साथ रही हों, हर किसी की फेवरिट मूवी उनके अंदर कुछ ना कुछ जगा जाती है। और यही उन्हें बार-बार देखने लायक बनाती है।अब आपकी बारी—कमेंट में बताइए, आपकी बार-बार देखी जाने वाली फेवरिट फिल्म कौन-सी है?

1 thought on “फिल्म जो बार-बार देखने का मन करता है – मेरी फेवरिट मूवी की वजह”

  1. मेरी पसंदीदा फिल्म ‘तमाशा’ है, जिसे इम्तियाज़ अली ने निर्देशित किया है। यह मेरी कम्फर्ट मूवीज़ में से एक है क्योंकि यह बहुत सी ऐसी बातें सिखाती है जो मुझे लगता है कि जवानी में सीखना बेहद ज़रूरी है। यह फिल्म उन लोगों के लिए एकदम उपयुक्त है जो खुद को खोया हुआ महसूस करते हैं, जो अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं, और जो अभी भी खोज में लगे हुए हैं।

    ‘तमाशा’ ज़िंदगी की सही जद्दोजहद और अनिश्चितताओं को दर्शाती है, और यह दिखाती है कि एक इंसान के दिमाग में क्या चलता है जब वह अपनी ज़िंदगी को समझने की कोशिश कर रहा होता है।

    सच्चा प्यार आपको व्यक्तिगत विकास को अपनाने के लिए प्रेरित करता है, और यह बहुत ज़रूरी है कि हम अपने दिल की सुनें। वही करें जो हमें पसंद है, और अपने जुनून को अपनाना ही जीवन का सच्चा अर्थ है।

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