WhatsApp Channel ज्वाइन करें !

Join Now

भागलपुर के इस क्षेत्र में करोड़ों की 7 निश्चय योजना कागजों में सिमटी, मूलभूत सुविधाएं के लिए भी तरस रहे ग्रामीण

बिहार में लगभग 20 वर्षों से नीतीश सरकार सक्रिय हैं। इन 20 वर्षों में कई बार गठबन्धन बदला लेकिन सत्ता की बागडोर नीतीश कुमार के हाथों ही रही। नीतीश सरकार ने हजारों योजनाओं का संचालन कुशलतापूर्वक किया जिसमें कई योजनाएं रामबाण भी साबित हुई। सामाजिक रूप से बिहार को मजबूत करने में नीतीश कुमार की भूमिका अद्वितीय है।

2015 विधानसभा चुनाव में “मिल का पत्थर” साबित हुई थी यह योजना

इन 20 वर्षों के कार्यकाल में जो सबसे चर्चित योजना रही वो है ‘7 निश्चय योजना‘ जिसकी शुरुआत नीतीश कुमार ने वर्ष 2015 में विधानसभा चुनाव से पहले की थी। इस योजना को तैयार करने का मुख्य उद्देश्य बिहार का सर्वांगीण विकास करना तथा जनता की बुनियादी जरूरत को पूरा करना था यह योजना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बहुत चर्चित और महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक रही जिसका इस्तेमाल जनता दल यूनाइटेड ने 2015 विधानसभा में मुख्य एजेंडे के रूप में किया।

सात निश्चय योजना का विवरण

इन 20 वर्षों के कार्यकाल में जो सबसे चर्चित योजना रही वो है ‘7 निश्चय योजना‘ जिसकी शुरुआत नीतीश कुमार ने वर्ष 2015 में विधानसभा चुनाव से पहले की थी। इस योजना को तैयार करने का मुख्य उद्देश्य बिहार का सर्वांगीण विकास करना तथा जनता की बुनियादी जरूरत को पूरा करना था यह योजना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बहुत चर्चित और महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक रही जिसका इस्तेमाल जनता दल यूनाइटेड ने 2015 विधानसभा में मुख्य एजेंडे के रूप में किया। यह योजना दो चरणों में लागू की गई। पहले चरण को वर्ष 2015 से 2020 तक लागू किया गया। इसके पहले भाग में 7 योजनाओं को निर्धारित किया गया और लक्ष्य रखा गया कि इन योजनाओं को हर जरूरतमंदों तक पहुंचना है। सात निश्चय योजना के पहले भाग में शामिल निश्चयों की सूची और उद्देश्य निम्नलिखित है–:

  • हर घर नल का जल — इसका उद्देश्य हर घर तक शुद्ध पेयजल की आपूर्त करना है।
  • हर घर शौचालय, घर का सम्मान – इसका उद्देश्य लोगों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाना है।
  • हर घर बिजली का कनेक्शन – इसका उद्देश्य बिहार का शत प्रतिशत विद्युतीकरण करना है।
  • पक्की गली-नाली योजना – इसका उद्देश्य ग्रामीण व शहरी इलाकों में पक्की सड़कों का विस्तार करना और जल निकासी को सही राह देना था।
  • आर्थिक हल, युवाओं को बल (स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड) – इसका उद्देश्य गरीब छात्र–छात्राओं को शिक्षा ऋण की सुविधा देना है।
  • कौशल विकास मिशन – इसका उद्देश्य युवाओं को रोजगारून्मुख दक्षता था प्रशिक्षण देना।
  • स्वयं सहायता भत्ता – इसका उद्देश्य बेरोज़गार युवाओं को 2 साल बेरोजगारी भत्ता के रूप में ₹1000 प्रति माह की सहायता प्रदान करना है।

सात निश्चय योजना की द्वितीय चरण की शुरुआत 10 अक्टूबर 2020 को चुनावी घोषणा में हुई। इसका लक्ष्य पहले चरण की सफलता को विस्तार देना और नई प्राथमिकताओं को शामिल करना रखा गया। योजना के द्वितीय चरण के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2024 25 में कुल 5,040 करोड़ रुपए को आवंटित किया गया है।

औपचारिक रूप से योजना का शुभारंभ और जमीनी हकीकत

वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद सरकार ने इस योजना को आधिकारिक रूप से लागू किया गया। 27 सितंबर 2016 को इस योजना के भीतर दो प्रमुख निश्चयों “हर घर नल का जल” और “शौचालय निर्माण – घर का सम्मान” का औपचारिक शुभारंभ हुआ। इन दोनों निश्चयों का उद्देश्य बिहार के हर घर तक नल का जल और शौचालय पहुंचना था, जिससे लोगों को पीने हेतु साफ पानी मिल सके और लोगों को खुले में शौच से मुक्ति मिल जाए।
7 निश्चय का प्रचार प्रसार के लिए टीवी, इंटरनेट, अखबार, प्रचार वाहन, होर्डिंग्स आदि को माध्यम बनाया गया जिससे इसकी जानकारी बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक पहुंचाई गई। प्रचार में किसी प्रकार की कमी नहीं रही, मुख्यमंत्री खुद आमसभाओं के माध्यम से इस योजना का महिमामंडन करते दिखे। लेकिन ये योजना आधिकारिक कार्यालयों में आने के बाद कमजोर पड़ गई और इसके लाभ से उपभोक्ता वंचित रह गए।

7 निश्चय की पहली दो योजना सीधे सीधे पंचायत प्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ गई। हर घर नल का जल निश्चय के तहत पाइप तो पहुंच गया लेकिन अब तक उसमें पानी नहीं आया। कई गांव ऐसे है कि जहां पाइपलाइन नाले में मिली हुई है और लोग उसी नाले के पानी पीने को मजबूर है। “शौचालय निर्माण – घर का सम्मान”, यह योजना पंचायत प्रतिनिधियों के आय का मुख्य स्रोत बन गई। अगर किसी उपभोक्ता को इसका लाभ लेना होता है तो उन्हें पहले ₹2000 रुपए का नजराना पेश करना पड़ता है।

बिहार सरकार ने सात निश्चय योजना के पहले चरण की सफलता को विस्तार करने के लिए इस योजना को दूसरे चरण में भी लागू कर दिया लेकिन बिहार के कई जिलों तथा गांव में यह योजनाएं सही तरीके से पहुंचाई गई है। इसका लाभ लाखों लोग सही तरीके से उठा रहे हैं। लेकिन एक क्षेत्र ऐसा भी है जहां तक अब भी इन योजनाओं का एक कतरा वास्तविक रूप से नहीं पहुंचा है। यहां के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरस रहे हैं। सरकारी कागजों पर 7 निश्चय इन क्षेत्रों में सकुशल संचालित हो रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बड़े मंचों से सात निश्चय की सफलता का डंका बजाते दिखते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। भागलपुर जिले का नाथनगर विधानसभा अभी इस योजना का लाभार्थी बने से वंचित है।

नाथनगर के गांवों में केवल प्रचार गाड़ी पहुंची, विकास की गाड़ी नही

भागलपुर जिले के नाथनगर विधानसभा में ऐसे कई गांव हैं जो अब भी विकास के मामले में 5 वर्ष पीछे चल रहे हैं। यहां न पीने को साफ पानी है, न शौचालयऔर न चलने के लिए सड़क। गांवों में सड़क के नाम पर खेत है। कुछ सड़के बनी भी है तो नाली का उचित निकास न होने के कारण वे सड़के जलाशयों का रूप ले लेती है। सरकारी कागजों पर इन योजनाओं को लोगों तक पहुंचा दिया गया है लेकिन वास्तव में ये योजनाएं भ्रष्ट सिस्टम का शिकार हो चुकी है।

अनाथ और विकलांग “नीतो” सरकारी लाभ पाने की इच्छा में बन गए कर्जदार

नाथनगर विधानसभा के टहसुर गांव में रहने वाले नीतो दास वर्ष 2013 में 10 वर्ष की उम्र में ही लकवा का शिकार हो गए। वह अपने बिस्तर से उठ नही सकते। उनके पिताजी की भी मृत्यु उसी वर्ष सांप काट लेने से सही समय पर अस्पताल न पहुंचने के कारण हो गई। उनकी 2 बहन है जिसमें बड़ी बहन की शादी सामाजिक योगदान से संभव हो पाया है। एक बहन अभी पढ़ रही है और मां गांव में दूसरे के यहां घरेलू काम कर राशन पानी की व्यवस्था करती है।
नीतो ने अपने वार्ड सदस्य से गुहार लगाई कि वह विकलांग है जिससे उन्हें शौच में काफी परेशानी होती है इसलिए उन्हें भी शौचालय निर्माण हेतु सरकार के तरफ से मिलने वाली ₹12000 की आर्थिक मदद प्रदान की जाए। वार्ड सदस्य के तरफ से कहा गया कि, आप पहले शौचालय बनवा लें उसके बाद आपको राशि आवंटित कर दी जाएगी। नीतो ने एक वर्ष पूर्व ही कर्ज लेकर शौचालय बनवा लिया लेकिन अबतक उन्हें शौचालय की राशि नहीं दी गई। उनसे बात करने पर पता चला कि टहसुर गांव के नेता आवाज उठाने पर उनके परिवार का नाम राशन कार्ड से हटाने की धमकी देते हैं। असहाय नीतो अपनी शारीरिक और आर्थिक दुर्बलता के कारण अपने हक से वंचित है। उनके यहां पीने के साथ पानी की भी व्यवस्था नहीं है। उनके घर के लोग अब भी कुएं के पानी का इस्तेमाल घरेलू कार्य तथा पीने के लिए करते हैं।

इब्राहिमपुर और भतौरिया पंचायत के कई घरों ने नहीं चखा नल के जल का स्वाद, नल मौजूद लेकिन नाली में

नाथनगर विधानसभा के अंतर्गत आने वाले इब्राहिमपुर और भतौरिया पंचायत में कई ऐसे घर हैं जहां नल जल योजना का पाइप तो पहुंच गया लेकिन उसमें से आज तक पानी की एक भी बूंद नहीं गिरी है। वहां की महिलाएं पानी के लिए दूसरे घरों और अन्य श्रोतों पर आधारित है जिस कारण उन्हें कई प्रकार की परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। इब्राहिमपुर में मौजूद मदरसे के भरोसे वहां के सैकड़ो घर पानी की आपूर्ति कर पाते हैं। कई घरों तक नल पहुंच भी है तो उसका कनेक्शन नाली में मिला हुआ है। लोग ना चाहते हुए भी नाली का पानी पीने को मजबूर है। उन्हें ऐसे जीवन जीने की आदत हो चुकी है।

बेलखुड़िया गांव में सड़क और खेत एक जैसा, एक बारिश के बाद आसानी से हो सकती है धान की खेती

बेलखुड़िया गांव में 10 साल बाद भी 7 निश्चय में शामिल”पक्की गली-नाली योजना” नहीं पहुंची है। बारिश के समय लोग अपने घरों के बाहर बारिश की रिमझिम बूंद से साफ सड़क की जगह कीचड़ों का दलदल पाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनका गांव विकास के मामले में सबसे पीछे है और उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है।

शिकायत पत्र अधिकारियों के टेबल पर खा रही है, शिकायतकर्ता को करना पड़ता है धमकियों का सामना

जब यहां के अनेक ग्रामीण अपनी-अपनी समस्याओं को लेकर अपने प्रतिनिधि या संबंधित अधिकारियों के पास जाते हैं तो उनसे एक आवेदन ले लिया जाता है और बदले में एक झूठा आश्वासन का खिलौना था मान लिया जाता है। ग्रामीणों द्वारा दिए गए आवेदन पर किसी प्रकार का काम नहीं होता बल्कि वह आवेदन पत्र बड़ी-बड़ी फाइलों में कार्यालय को भरने का काम करती है। इससे अधिक कई बार ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि द्वारा शिकायतकर्ताओं को विभिन्न तरीकों से धमकाया जाता है। उनका नाम राशन कार्ड से हटाने की धमकी तो दी ही जाती है अपितु उन्हें हिंसक रूप से भी प्रताड़ित किया जाता है। ग्रामीणों के अनुसार लोकतंत्र की परिभाषा उनके लिए विपरीत साबित हो चुकी है। अगर उन्हें किसी भी प्रकार का सरकारी लाभ पाना है तो बिना घूस के सहारे की वे उसे लाभ को कभी नहीं प्राप्त कर सकते हैं। वे भ्रष्टाचारियों का शिकायत भी नहीं कर सकते।

कब होगा समस्याओं का समाधान और दौड़ेगी विकास की गाड़ियां?

7 निश्चय योजना”, जो कागजों पर तो मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर ये योजना पंचायत प्रतिनिधियों की आमदनी का नया साधन बनकर रह गई है। नल लगा है, लेकिन पानी नहीं। शौचालय बने हैं, लेकिन रिश्वत लेकर। सड़कें बनी हैं, लेकिन खेतों से भी बदतर। जिन लोगों को इन योजनाओं की सबसे ज्यादा ज़रूरत थी, वे आज भी दर-दर भटक रहे हैं। जब तक योजनाओं को वोट बैंक समझा जाएगा तब तक विकास की गाड़ी सिर्फ चुनावी भाषणों में ही दौड़ेगी।
इसी वर्ष राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले है। सभी पार्टियां टिकट वितरण को लेकर दाव पेंच खेल रही है। राजनीतिक रणनीतिकार जातीय समीकरण के आधार पर जीत की रणनीतियां बना रहे। चुनाव की तैयारी तेज हो चुकी है। लेकिन अब सवाल यह है कि यहां की जनता फिर से अपनी जाती वाले उसी प्रतिनिधि को चुनेगी जिन्होंने उन्हें अब तक जरूरी सुविधाएं प्रदान नहीं की या क्षेत्र में किए गए कार्यों के आधार पर 2025 विधानसभा का चुनाव होगा?

Report by Siddhartha Gupta ( Media Student )

Leave a comment