भागलपुर के एक गांव इब्राहिमपुर से ग्राउंड रिपोर्ट
बिहार के भागलपुर ज़िले के नाथनगर विधानसभा क्षेत्र के एक गांव में जब हम पहुंचे, तो वहां हवा में बेचैनी थी और ज़मीन पर गीली नहीं, सूखी उम्मीदें थीं। यह कोई सूखा प्रभावित इलाका नहीं है, फिर भी यहां लोग पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं—नदियों से घिरे बिहार में ये हाल एक विडंबना जैसा लगता है।
नल हैं, लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए
गांव के लगभग हर घर में नल तो हैं, लेकिन उनमें पानी नहीं। नहाने और पीने की तो बात छोड़िए, खाना बनाने के लिए भी पानी नहीं मिल पा रहा। एक महिला ने आंखों में आंसू लिए कहा, “बर्तन धोने का भी पानी नहीं है, अब तो बच्चों को कैसे साफ रखें, ये समझ नहीं आता।”
जहां कभी नल से पानी गिरता था, वहां अब सिर्फ लोगों की उम्मीदें टपकती हैं।
टूटी टंकी, फटी पाइपलाइन और गंदगी का पानी
गांव की पानी की टंकी वर्षों से टूटी पड़ी है, देखरेख का कोई नामोनिशान नहीं। जो पाइपलाइन बिछाई गई थी, वो जगह-जगह से फटी हुई है। इन पाइपों से पानी के साथ कीचड़ और बदबू भी घरों तक पहुंचती है।बच्चों को दस्त लग जाते हैं, लेकिन उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है।
“वोट मांगने आएंगे तो चप्पल से मार भगाएंगे” — युवाओं में आक्रोश

गांव के युवाओं का ग़ुस्सा अब उबाल पर है।
एक युवक ने खुलेआम कहा,
“अगर अब विधायक जी वोट मांगने आए तो उन्हें चप्पल से मार कर भगा देंगे।”वो आगे कहते हैं,
“हमारे बच्चे प्यासे तड़पते हैं और ये लोग एयरकंडीशन रूम में बैठ कर चुनावी रणनीति बनाते हैं।”
पानी के लिए मदरसे की शरण में महिलाएं और बच्चे

सरकारी व्यवस्था जब मुंह फेर लेती है, तब इंसानियत ही रास्ता दिखाती है। गांव के एक पुराने मदरसे में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था की गई है।वहां हमने जो नज़ारा देखा, वो रुला देने वाला था—महिलाएं बाल्टी और बोतल लिए कतार में खड़ी थीं। कई के साथ छोटे बच्चे थे, जो प्यास के कारण रो रहे थे।
एक मां ने रुआंसी आंखों से कहा,
“बच्चा तीन बार बोला ‘मम्मी पानी दो’… हम क्या दें?”
समाजसेवा की मिसाल: आशीष मंडल पहुंचे मदद को

जहां नेता गायब हैं, वहां एक उम्मीद की किरण दिखी। गोपाल मंडल के बेटे आशीष मंडल, जो एक समाजसेवी के तौर पर जाने जाते हैं, मौके पर मौजूद थे। उन्होंने लोगों की बातें सुनीं, दुख साझा किया और मदद का भरोसा दिलाया।
“आपकी तकलीफ अब मेरी भी है,” उन्होंने कहा। “जो हो सकेगा, मैं करूंगा।”
आखिर कब तक प्यासे रहेंगे ये लोग?
पानी की ये लड़ाई सिर्फ एक गांव की नहीं है। ये उस पूरे तंत्र पर सवाल है जो बुनियादी सुविधाओं पर राजनीति तो करता है, पर ज़िम्मेदारी से मुंह चुराता है।इस गांव की कहानी देश के कई हिस्सों की हकीकत है, जहां लोगों को जीने के लिए सिर्फ एक घूंट साफ पानी भी नसीब नहीं।
प्यास अब सिर्फ पानी की नहीं, सिस्टम की भी है

जब बच्चों की प्यास सिसकियों में बदल जाए, जब मांओं की आंखों से आंसू सूख जाएं, तब समझिए कि यह सिर्फ पानी का नहीं, इंसाफ का सूखा है।नाथनगर की यह कहानी बताती है कि लोकतंत्र में सिर्फ वोट नहीं, जवाबदेही भी होनी चाहिए। अब जनता को चुप नहीं बैठना चाहिए—अब आवाज़ उठानी होगी।क्योंकि अगर एक गांव प्यासा है, तो लोकतंत्र खुद बीमार है।
भागलपुर के नाथनगर विधानसभा क्षेत्र से Ayush Singh की ग्राउंड रिपोर्ट