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ऐशबाग आरओबी: 10 साल बाद आई सुविधा बन रही संकट का कारण, 88 डिग्री का टर्न बना एक्सीडेंट जोन

भोपाल के नागरिकों को दस वर्षों के लंबे इंतजार के बाद ऐशबाग रेलवे क्रॉसिंग पर ओवरब्रिज (आरओबी) की सौगात मिलने जा रही है। लेकिन यह सौगात एक नई परेशानी को जन्म देती दिख रही है। करीब 18 करोड़ रुपए की लागत से बने इस ब्रिज की डिजाइन पर अब सवाल उठ रहे हैं। कारण – इसका खतरनाक टर्न, जो लगभग 88 डिग्री का है। इंजीनियरिंग की यह “अद्भुत” मिसाल अब एक्सीडेंट जोन में तब्दील होने की आशंका जता रही है।

टर्निंग ऐसा जैसे दो स्केल रख दिए हों साथ में

ब्रिज पर वाहन जैसे ही चढ़ते हैं, उन्हें एक लगभग 90 डिग्री के तीखे मोड़ से गुजरना पड़ता है। आम भाषा में कहें तो ऐसा लगता है जैसे दो स्केल को जोड़कर एक एल-शेप का मोड़ बना दिया गया हो। इस तीव्र मोड़ के कारण तेज रफ्तार वाहन दीवार से टकरा सकते हैं या दूसरी दिशा से आ रहे वाहनों से भिड़ सकते हैं।

दैनिक भास्कर से बात करते हुए स्ट्रक्चर इंजीनियर डॉ. शैलेंद्र बागरे ने कहा, “डिजाइन को देखकर ऐसा लगता है मानो सड़क इंजीनियरिंग के मूल सिद्धांतों को दरकिनार कर दिया गया हो। 88 डिग्री का यह एंगल न सिर्फ अप्राकृतिक है, बल्कि वाहन चालकों के लिए जानलेवा भी हो सकता है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसे एंगल पर गाड़ियां सामान्य स्थिति में बाहर की ओर झुकती हैं और गिरने की संभावना रहती है।

तकनीकी विशेषज्ञों की राय: यह सिर्फ मोड़ नहीं, हादसे की भूमिका है

मौलाना आज़ाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (मैनिट) के ट्रैफिक विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ रोकड़े ने चेतावनी दी कि “यदि इस टर्निंग पर स्पीड कंट्रोल के उपाय नहीं किए गए, तो यह जगह गंभीर हादसों का कारण बन सकती है। केवल साइन बोर्ड लगाने से बात नहीं बनेगी, बल्कि ट्रैफिक को धीमा करने के लिए संरचनात्मक बदलाव जरूरी हैं।”

रेलवे ने जताई थी आपत्ति, लेकिन PWD ने कहा – ‘कोई विकल्प नहीं था’

ब्रिज के निर्माण के समय रेलवे ने भी 90 डिग्री की इस टर्निंग पर आपत्ति दर्ज की थी। मगर PWD ने ‘जगह की कमी’ का हवाला देकर इसे नज़रअंदाज़ कर दिया। विभाग के मुताबिक, ऐशबाग रेलवे क्रॉसिंग बंद होने के कारण यह ब्रिज क्षेत्र के लिए आवश्यक था और उस स्थिति में उन्हें उपलब्ध भूमि में ही समाधान निकालना था।

18 करोड़ का प्रोजेक्ट और फिर भी बुनियादी गलती?

लागत: ₹18 करोड़

लंबाई: 648 मीटर

चौड़ाई: 8 मीटर

रेलवे सेक्शन: 70 मीटर लंबा

निर्माण प्रारंभ: मई 2022

समाप्ति लक्ष्य: 18 माह (जो समय सीमा पार कर चुका है)

10 साल बाद तैयार हुआ यह ब्रिज अब सवालों के घेरे में है। आम नागरिकों के मन में चिंता है कि इतने लंबे इंतजार और भारी लागत के बाद भी एक बुनियादी इंजीनियरिंग फ्लॉ कैसे रह गया?

सवाल जो अब जवाब मांगते हैं:

  1. क्या एक दशक के इंतजार के बाद जनता को सुरक्षित इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं मिलना चाहिए?
  2. क्या ‘जगह की कमी’ बहाना बनाकर लोगों की जान जोखिम में डाली जा सकती है?
  3. अगर रेलवे ने आपत्ति जताई थी, तो डिजाइन को दोबारा क्यों नहीं सोचा गया?
  4. क्या इंजीनियरिंग की समीक्षा अब स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाएगी?

आगे क्या?

PWD फिलहाल मोड़ पर सुधारात्मक कार्यों की तैयारी कर रहा है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह काम समय रहते और प्रभावी ढंग से होगा? या फिर ब्रिज चालू होने के बाद एक के बाद एक हादसे इस परियोजना की असफलता की कहानी कहेंगे?

ऐशबाग आरओबी का निर्माण एक महत्वपूर्ण जरूरत था, इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन जिस तरह इस ब्रिज को डिजाइन किया गया है, उसमें सुरक्षा के मूल सिद्धांतों की अनदेखी चिंता का विषय है। कहीं ऐसा न हो कि जो ब्रिज भोपाल के लोगों की राहत का जरिया बनना था, वही उनके लिए हर दिन का डर बन जाए।

अब वक्त है कि अधिकारी इस “इंजीनियरिंग चमत्कार” को सही करने की जिम्मेदारी ईमानदारी से लें, क्योंकि जनता की जान, किसी भी परियोजना की लागत से कहीं ज़्यादा कीमती है।

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