भागलपुर, बिहार — सरकारी दावों के उलट, ज़मीनी हकीकत फिर एक बार बेनकाब हुई है। बीती रात करीब 2 बजे एक गंभीर स्थिति सामने आई जब भागलपुर के मॉडल हॉस्पिटल में एक मरीज को भर्ती करने से मना कर दिया गया। जब इसकी सूचना स्थानीय संवाददाता को मिली, तो वे मौके पर पहुंचे और जो देखा, वह सिस्टम की लापरवाही की एक और चौंकाने वाली तस्वीर
हॉस्पिटल का दरवाज़ा खुला था, सिस्टम का नहीं

मरीज के परिजनों ने बताया कि वो रात करीब 2 बजे मरीज को लेकर इमरजेंसी वार्ड पहुंचे। लेकिन वहां न तो कोई डॉक्टर था और न ही कोई स्टाफ। ड्यूटी चार्ट पर दो महिला स्टाफ के नाम जरूर दर्ज थे, लेकिन मौके पर वे मौजूद नहीं थीं।
इसी दौरान, खुद को हॉस्पिटल स्टाफ बताने वाला एक युवक सामने आया और मरीज को एडमिट करने से साफ मना कर दिया। जब संवाददाता ने उससे पहचान पत्र दिखाने को कहा, तो वह पहले झल्लाया, बदसलूकी पर उतारू हुआ और बाद में जो ID कार्ड दिखाया, उस पर EMT Department – Ambulance Service लिखा था।
कौन है ये युवक, जो इमरजेंसी में डॉक्टर की गैरमौजूदगी में फैसले ले रहा था?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर ड्यूटी पर कोई डॉक्टर या स्टाफ मौजूद नहीं था, तो यह EMT (इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन) युवक किस अधिकार से मरीज को भर्ती करने से मना कर रहा था? EMT का काम मरीज को अस्पताल तक सुरक्षित पहुंचाना होता है, इलाज़ में दखल देना नहीं।
जब संवाददाता ने सवाल उठाए, तो युवक ने बात पलट दी और कहा कि उसने मना नहीं किया था। लेकिन मरीज के परिजनों के मुताबिक, उसकी ही वजह से समय बर्बाद हुआ और इलाज में देरी हुई।
सुपरिटेंडेंट ने दी सफाई, लेकिन सवाल बरकरार

जब मामला गर्माया और मौके पर बहस शुरू हुई, तब अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डॉक्टर साहब पहुंचे। उन्होंने माना कि जो युवक वहां था, वह EMT स्टाफ है और उसने अपनी सीमा से बाहर जाकर काम किया। उन्होंने जांच और आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन तो दिया, लेकिन इससे वो सवाल खत्म नहीं होते जो इस पूरी घटना ने जन्म दिए हैं।
सवाल जो सिस्टम से पूछे जाने चाहिए

- EMT स्टाफ को मरीज को भर्ती करने या मना करने का अधिकार किसने दिया?
क्या EMT अब डॉक्टर और नर्सों की जगह लेने लगे हैं? - ड्यूटी चार्ट पर जिन महिलाओं का नाम था, वो उस मौके पर कहाँ थीं?
क्या ड्यूटी से गायब रहना अब आम बात हो गई है? - मॉडल हॉस्पिटल में मशीनें खराब क्यों रहती हैं?
मरीजों को “मशीन खराब है” का जवाब कब तक मिलेगा? - क्या ये सब मिलकर मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजने का खेल है?
क्या सरकारी अस्पताल अब ‘दलाल नेटवर्क’ का हिस्सा बनते जा रहे हैं?
‘मॉडल’ हॉस्पिटल की हकीकत या महज़ एक दिखावा?
भागलपुर का यह अस्पताल सरकार द्वारा मॉडल हॉस्पिटल के रूप में प्रचारित किया जाता है। लेकिन जब इमरजेंसी में सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, तभी अगर डॉक्टर, स्टाफ और मशीनें सब नदारद हों, तो ये ‘मॉडल’ किसका है?
एक सामान्य नागरिक अगर आधी रात को मदद की आस में अस्पताल पहुंचता है, और वहां उसे सिस्टम की लापरवाही, गैर-जिम्मेदार स्टाफ और EMT जैसी सीमा से बाहर जाने वाली हरकतें देखने को मिलती हैं, तो सवाल उठना लाज़िमी है।
क्या ये किसी एक रात की कहानी है या सिस्टम का स्थायी चेहरा?

यह मामला महज़ एक रात की कहानी नहीं हो सकता। यह उस प्रशासनिक ढांचे की तस्वीर है जहां जिम्मेदारियां धुंधली होती जा रही हैं और जवाबदेही शून्य होती दिख रही है।
इसी तरह के घटनाएं रोज़ कहीं न कहीं घट रही होंगी, लेकिन हर बार कोई पत्रकार मौके पर नहीं पहुंचता, और न ही हर बार मामला गर्म होता है। ऐसे में जिनके पास आवाज़ नहीं है, वो कहाँ जाएं?
जरूरत है सख्त कार्रवाई की, न कि सिर्फ जांच के आश्वासन की

प्रशासन को चाहिए कि:
- उस EMT युवक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो जो अपनी सीमा से बाहर जाकर फैसले ले रहा था।
- इमरजेंसी वार्ड में 24×7 डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की अनिवार्यता सुनिश्चित की जाए।
- मशीनों की समय-समय पर जांच और मरम्मत का पारदर्शी रिकॉर्ड रखा जाए।
मरीज नहीं, सिस्टम बीमार है

रात के सन्नाटे में एक परिवार मदद की उम्मीद लेकर भागलपुर के मॉडल हॉस्पिटल पहुंचा, लेकिन वहां जो मिला वो था डर, असहायता और सिस्टम की बेरुखी। सवाल है कि ऐसे में ‘मॉडल’ शब्द का क्या अर्थ रह जाता है?समय रहते अगर इस पर सख्ती से कार्रवाई नहीं की गई, तो यह कहानी किसी और की रात की हकीकत बन सकती है।अब वक्त है सवाल पूछने का, जवाब मांगने का और सिस्टम को उसकी ज़िम्मेदारी याद दिलाने
बिहार में मेडिकल व्यवस्थाओं की खुलासा करने वाली भागलपुर से Ayush & Siddhartha की विशेष रिपोर्ट