जब बाढ़ सब कुछ बहा ले गई
मैं हाल ही में अपने गांव गई थी — वही गांव जिसका आधा हिस्सा साल 2024 में आई भयानक बाढ़ की चपेट में आ गया था। लेकिन अफसोस की बात ये है कि आज तक वहां कोई ठोस सरकारी मदद नहीं पहुंची। गांव के लोग अब भी उस डरावनी रात की यादों में जी रहे हैं, जब देखते ही देखते 70 से 80 घर भारतीय कटाव और बाढ़ के पानी में बह गए थे।
वो रात सिर्फ घर ही नहीं ले गई, बल्कि लोगों का जीवनभर की मेहनत, सपना और आसरा भी लील गई। आज भी कई परिवार तिरपाल के नीचे गुज़ारा कर रहे हैं। बच्चों की पढ़ाई छूट चुकी है, बुजुर्गों की दवा-पानी का कोई ठिकाना नहीं है, और रोज़गार के साधन तो जैसे हवा में उड़ गए हों।
एक साल बाद भी सरकार की चुप्पी

सरकारी तंत्र की नाकामी इस कदर है कि एक साल बीतने के बावजूद किसी भी प्रकार की पक्की सहायता गांव वालों को नहीं मिल पाई। विधायक आए, नेता आए — मगर बस झूठे आश्वासन और वादों की गठरी बांधकर लौट गए। “बहुत जल्द मदद मिलेगी,” ये कहकर सभी चले गए, लेकिन आज तक कुछ नहीं बदला।
अब फिर से बाढ़ आने वाली है। गांव के लोग डरे हुए हैं — कहीं फिर वही हादसा दोहराया न जाए। लेकिन न सरकार ने बांध मज़बूत किए, न कटाव रोका गया, न पुनर्वास की योजना बनी। ऐसे में एक सवाल बार-बार दिल में उठता है — क्या गरीब की ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं?
अब भी वक्त है — इंसानियत बचाने का
यह गांव सरकार की योजनाओं में सिर्फ एक नंबर बनकर रह गया है। लेकिन यहां के लोगों की पीड़ा असली है, उनकी आंखों में आंसू असली हैं, और उनका टूटता हुआ भरोसा भी असली है।अब जरूरत है कि गांव के लोगों की आवाज़ को उठाएं। ताकि जिनके घर बहे हैं, उन्हें दोबारा बसाया जा सके। जो परिवार उजड़ चुके हैं, उन्हें फिर से खड़ा किया जा सके।क्योंकि अगर आज भी हम चुप रहे, तो शायद अगली बाढ़ सिर्फ घर नहीं, इंसानियत भी बहा ले जाएगी।
Report by Sonam Singh
